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कालाजार उन्मूलन अभियान को सफल बनाने को दवाओं का कोर्स पूरा करना है जरूरी
- लक्षण को पहचानने के बाद इलाज होगा आसान, सदर अस्पताल में उपलब्ध है बेहतर इलाज की सुविधा
- कालाजार से बचाव का सबसे बेहतर और सरल उपाय है स्वच्छता और सावधानी
मुंगेर, 2 जून-
कालाजार उन्मूलन अभियान को सफल बनाने के लिए दवाओं का कोर्स पूरा करना है जरूरी । उक्त बात पत्रकारों से बातचीत करते हुए डिस्ट्रिक्ट वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल ऑफिसर डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने कही। उन्होंने बताया कि भारत में कम-से-कम 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग मौजूद हैं। जिससे देशभर में लाखों लोग प्रभावित होते हैं। इनमें प्रायः अधिकतर लोग गरीब एवं संवेदनशील वर्ग से होते हैं। आज विश्व में हर पांच में से एक व्यक्ति एनटीडी रोगों से पीड़ित है। दुनिया में इन 11 बीमारियों का भारी बोझ भारत पर भी है। इन रोगों से रोगी में दुर्बलता तो आती ही है, कई स्थितियों में ये पीड़ित व्यक्ति की मौत का कारण भी बनती हैं। उन्होंने बताया कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग में कालाजार भी एक प्रमुख रोग है जिसके कारण जिले में हर साल इसके मरीज पाए जाते ।
बालू मक्खी के काटने से होता है कालाजार :
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ.अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि कालाजार धीरे-धीरे विकसित होने वाली एक बीमारी है जो मादा फ्लैबोटामस अर्जेंटाइप्स (बालू मक्खी) के काटने से होता है। बालू मक्खी कम रोशनी और नमी वाले स्थानों जैसे मिट्टी की दीवारों की दरारों, चूहे के बिलों तथा नम मिट्टी में रहती है इसलिए इसको ले विशेष सावधानी बरतनी जरूरी है। मक्खी के काटने के 15 से 20 दिन बाद व्यक्ति में कालाजार के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। पोस्ट कालाजार डर्मल लिसमिनिएसीस (पीकेडीएल) यानि त्वचा का कालाजार एक ऐसी स्थिति है, जब एलडी बॉडी नामक परजीवी त्वचा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें संक्रमित कर देता और वहीं रहते हुए विकसित होकर त्वचा पर घाव के रूप में उभरने लगता है। इसकी वजह से रोगी को बार- बार बुखार आने के साथ- साथ भूख में कमी, वजन का घटना, थकान महसूस होना, पेट का बढ़ जाना आदि इसके लक्षण के रूप में दिखाई देने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को तुरंत नजदीक के अस्पताल में जाकर अपनी जांच करवानी चाहिए। बीमारी के ठीक होने के बाद भी कुछ व्यक्ति के शरीर पर चकता या दाग होने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को भी अस्पताल जाकर अपनी जांच करानी चाहिए।
जिला में 29 मई तक कालाजार का कोई केस नहीं है जबकि पीकेडीएल का सिर्फ एक केस सदर प्रखंड में है :
उन्होंने बताया कि जिला में अभी कालाजार का एक भी एक्टिव केस नहीं है। जबकि पिछले वर्ष 2021 में जिला के बरियारपुर प्रखण्ड में 4 केस चिह्नित हुए थे। वहीं 29 मई 2022 तक जिला के सदर प्रखंड में पीकेडीएल का सिर्फ एक केस मिला है। पिछले वर्ष जिला भर में पीकेडीएल का कोई केस नहीं मिला था। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष जिला के बरियारपुर प्रखण्ड में कालाजार से एक ब्यक्ति की मौत रिपोर्ट की गई थी।
कालाजार को जड़ से खत्म करने के लिए दवाओं का कोर्स पूरा करना जरूरी :
उन्होंने बताया कि कालाजार का इलाज पूर्णरूपेण संभव है। लेकिन इसके लिए 12 सप्ताह तक दवा का नियमित सेवन जरूरी है। उन्होंने बताया कि जिला के सदर अस्पताल में कालाजार रोगियों के सही इलाज की ब्यवस्था है। इस बीमारी की पहचान (डायग्नोसिस )के लिए आर.के. 39 आरडीटी किट, बोन मैरो, स्प्लेनिक एस्पिरेशन का इस्तेमाल करते हैं।
मरीजों को आर्थिक सहायता का मिलेगा लाभ :
वेक्टर डिजीज कंट्रोल ऑफिसर संजय कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि कालाजार से पीड़ित रोगी को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता दी जाती है। मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में बीमार व्यक्ति को राज्य सरकार द्वारा 6600 रुपए और केंद्र सरकार द्वारा 500 रुपए दिए जाते हैं। यह राशि कालाजार संक्रमित व्यक्ति को संक्रमण के समय में दिया जाता है। वहीं पीकेडीएल चमड़ी से जुड़े कालाजार संक्रमित रोगी को केंद्र सरकार की तरफ से 4000 रुपए दिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि जिला भर में कालाजार के 115 की इन्फॉर्मर मौजूद हैं जिनमें से 25 प्राइवेट डॉक्टर्स, 3 पीआरआई मेंबर्स, 11 कम्युनिटी मेम्बर, 38 प्राइवेट लैब सहित अन्य लोग हैं।
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रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Dr. Rajesh Kumar