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आशा बेबी कुमारी ने ख़ुद को किया साबित, कोरोना काल में बनी जागरूकता दूत
- by
- May 31, 2020
- 2400 views
गांव के लोगों से मास्क पहनने व बार-बार हाथ धोने की कर रहीं अपील
बांका, 31 मई
कोरोना का संक्रमण दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। लोग घरों से निकलने से परहेज कर रहे हैं। ऐसे माहौल में भी बौंसी प्रखंड के दलिया गांव की आशा कार्यकर्ता बेबी कुमारी घर-घर जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं। वह ग्रामीणों को स्वच्छता के फायदे गिना रही हैं। घर से निकलते वक्त मास्क पहनने की सलाह दे रही हैं। बार-बार लोगों से हाथ धोने की अपील कर रही हैं। इनके इस समर्पण के कारण लोग इन्हें जागरूकता दूत कहना शुरू कर दिए हैं.
स्वास्थ्यकर्मी गांव-गांव जाकर लोगों के स्क्रीनिंग कर रहे हैं, उसमें भी वह अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। गांव की महिलाओं का सफलतापूर्वक प्रसव कराने की जिम्मेदारी तो उनके पास है ही। कोरोना को लेकर ड्यूटी करने साथ-साथ वह अपना रुटिन कार्य भी बेहद जिम्मेदारी के साथ कर रही हैं। गर्भवती महिलाओं को घर से नहीं निकलने की सलाह दे रही हैं। किसी भी तरह की जरूरत पड़ने पर उन्हें कॉल करने कह रही हैं। अगर कोई कॉल कर मदद के लिए बुलाती हैं तो बेबी कुमारी जरूरत के सामान के साथ समय से उनके घर पर पहुंच जा रही हैं। बेबी कुमारी कहती हैं कि कोरोना के मामले जब से आने लगे हैं, तब से उनलोगों की जिम्मेदारी दोगुनी हो गई है। महिलाओं के प्रसव से संबंधित काम तो कर ही रहे हैं। साथ ही गांव में घर-घर जाकर लोगों को कोरोना से बचाव के तरीके भी बता रही हूं। एक साथ दोहरी जिम्मेदारी कैसे निभा पा रही हैं? यह पूछने पर वह बताती हैं कि जब लोगों के जीवन पर ही संकट आ गया है तो हमें अपना काम जिम्मेदारी के साथ करना ही पड़ेगा। इसे वह काम का बोझ नहीं समझती हूं, बल्कि जिम्मेदारी समझती हैं।
10 साल में 350 से ज्यादा प्रसव कराया: बेबी कुमारी ने बतौर आशा कार्यकर्ता 2010 से काम शुरू किया है। इस 10 साल के दौरान उन्होंने लगभग 350 महिलाओं का सफलतापूर्वक प्रसव कराया है। वह कहती हैं कि गांव के लोगों में पहले जागरूकता का अभाव होता था, इस वजह से सफलतापूर्वक प्रसव में परेशानी होती थी। उनके आने से पहले ऑपरेशन के जरिये प्रसव कराने का दर ज्यादा था, लेकिन जब से वह आयी है. तब से इसमें कमी आई है। उनकी कोशिश रहती है कि हर किसी का सामान्य तरीके से ही प्रसव हो।
परिवार का मिलता है साथ: 2008 में दुर्घटना में पति विकलांग हो गए। घर के कामकाज के साथ परिवार चलाने की जिम्मेदारी भी उनपर आ गई। उस समय तो वह अपनी आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिए आशा से जुड़ गईं, लेकिन धीरे-धीरे इस काम में उन्हें मन लग गया। और इस काम में परिवार के सदस्यों ने भी उनका बखूबी साथ दिया। बेबी कुमारी को दो बेटे हैं। एक नौकरी कर रहा है, दूसरा भी लॉकडाउन खत्म होने के बाद नौकरी करने लगेगा। बेबी कहती हैं काम के दौरान मेरे दोनों बेटे मन से पढ़ाई करते रहे। इस वजह से काम से मेरा ध्यान नहीं भटका। सच कहें तो घर की जिम्मेदारी में अपनी भूमिका निभाकर उनलोगों ने मेरा भरपूर सहयोग किया।
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