कुपोषित बच्चों के लिए संजीवनी है पोषण पुर्नवास केंद्र

• कुपोषित बच्चों के विशेष खानपान व देखभाल की होती हैं सुविधाएं 

 

• जिले  में 50.6 प्रतिशत बच्चे नाटापन से हैं ग्रसित 

 

लखीसराय, 11जून:

कोरोना महामारी ने कई जरुरी स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित किया है. लेकिन अब धीरे-धीरे जरुरी स्वास्थ्य सेवाओं को नियमित करने का प्रयास किया जा रहा है. इसी कड़ी में पोषण पुनर्वास केन्द्रों में भी मिलने वाली सेवाओं को नियमित किया गया है.  कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार गंभीर है. कुपोषण की इस स्थिति से निबटने के लिए पोषण पुर्नवास केंद्र(एनआरसी) स्थापित किये गये हैं. पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चे को 14 दिनों के लिए रखा जाता है. डाक्टर की सलाह के मुताबिक उनका खानपान का विशेष ख्याल रखा जाता है. यहां रखा गया कोई बच्चा 14 दिनों में कुपोषण से मुक्त नहीं हो पाता है तो वैसे बच्चों को एक माह तक यहां रख कर विशेष देखभाल की जाती है. भर्ती हुए बच्चे के वजन में न्यूनतम 15 प्रतिशत की वृद्धि के बाद ही यहाँ से डिस्चार्ज किया जाता है. पोषण पुर्नवास केंद्र में मिलने वाली सभी सुविधाएं निशुल्क होती है।  

 

 

ये हैं पोषण पुर्नवास केंद्र में भर्ती के मानक:

 

बच्चे को एनआरसी में भर्ती करने के लिए कुछ मानक निर्धारित हैं. इनमें बच्चों के विशेष जांच के तहत उनका वजन व बांह आदि का माप किया जाता है. 6 माह से अधिक एवं 59 माह तक के ऐसे बच्चे जिनकी बांई भुजा 11.5 सेमी हो और उम्र के हिसाब से लंबाई व वजन न बढ़ता हो वह कुपोषित है. उसे ही पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती किया जाता है. इसके साथ ही दोनों पैरों में पिटिंग एडीमा हो तो ऐसे बच्चों को भी यहां पर भर्ती किया जाता है.

 

 

जानें पोषण पुनर्वास केंद्र पर मिलने वाली सेवाएं: 

 

• रेफर किये गये बच्चों की पुन:जांच करना 

• उनमें कुपोषण या अतिकुपोषण की पहचान करना 

• बच्चे के पोषण का पूरा पूरा ख़्याल रखना

• बच्चों के पोषण पर अभिभावकों को उचित सलाह देना

• भर्ती हुए कुपोषित बच्चों की 24 घंटे पूरी देखभाल

• डिस्चार्ज के बाद हर 15 दिन में 2 माह तक फॉलोअप

 

 

 

क्या कहते हैं आंकड़ें: 

 

 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में 5 वर्ष से कम आयु के 50.6 बच्चों की लंबाई उनकी आयु के हिसाब से कम है यानी वे नाटापन से ग्रसित हैं. वहीं 5 वर्ष से कम आयु के 20 फीसदी बच्चों का वजन उनकी आयु के हिसाब से कम है और वे दुबलापन से ग्रसित हैं. इसी आयु वर्ग के  47.3 फीसदी बच्चे कम वजन वाले हैं और 7.1 प्रतिशत बच्चों का वजन उनकी आयु के हिसाब से बहुत अधिक कम है। 

 

 

इसे भी जानिये:

 

बिहार में पांच वर्ष से कम उम्र के 48 प्रतिशत यानी 61 लाख बच्चे नाटे कद के हैं. यानी उनका शारीरिक विकास सही तरीके से नहीं हो पाया है. वहीं क्लीनिकल एंथ्रोपोमेट्रिक एंड बायोकेमिकल सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषित बच्चों की सबसे अधिक संख्या वाले नौ राज्यों की सूची में  बिहार शीर्ष पर है. रिपोर्ट के मुताबिक 52 प्रतिशत बच्चे कुपोषण की वजह से नाटे कद के हैं. इनमें से 8 प्रतिशत बच्चे अतिकुपोषित हैं.

रिपोर्टर

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