एनीमियामुक्त भारत कार्यक्रम से एनीमिया के ख़िलाफ़ मुहिम में मिलेगी गति

 
 
- 6 आयु वर्ग के लोगों को एनीमिया से मुक्ति दिलाने का रखा गया है लक्ष्य 
 
मुंगेर, 03 जनवरी-
 
एनीमिया एक गंभीर लोक स्वास्थ्य समस्या है। इससे एक ओर जहाँ शिशुओं का शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध होता है वहीं किशोरियों एवं माताओं में कार्य करने की क्षमता में भी कमी आ जाती है। इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय पोषण अभियान के अंतर्गत‘ एनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। बिहार सहित देश के सभी राज्यों में यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम  संचालित किया जा रहा है । इस कार्यक्रम के तहत 6 विभिन्न आयु वर्ग के समूहों को चिह्नित कर उन्हें एनीमिया से मुक्त करने की पहल की गई है। 
 
एनीमिया में प्रतिवर्ष 3% की कमी लाने का लक्ष्य:   
मुंगेर के सिविल सर्जन डॉ. हरेन्द्र आलोक ने बताया कि इस अभियान के तहत 6 विभिन्न आयु वर्ग की महिलाओं को लक्षित किया गया है। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश के लोगों को एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी से बचाना है। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों ही इस अभियान के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ  शिक्षा, आईसीडीएस और जीविका के अधिकारियों के साथ मीटिंग हुई थी जिसमें विशेषज्ञ के द्वारा एनीमिया की वजह से होने वाली बीमारियों और उससे बचने के उपाय के बारे में परिचर्चा की गई थी। इस कार्यक्रम के तहत एनीमिया में प्रतिवर्ष 3% की कमी लाने का लक्ष्य भी रखा गया है। इसके लिए सरकार द्वारा 6X6X6 की रणनीति के तहत 6 आयुवर्ग, 6 प्रयास एवं 6 संस्थागत व्यवस्था की गयी है। यह रणनीति आपूर्ति श्रृंखला, मांग पैदा करने और मजबूत निगरानी पर केंद्रित है। उन्होंने बताया कि खून में आयरन की कमी होने से शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसके लिए सभी को आयरन एवं विटामिन ‘सी’ युक्त आहार का सेवन करना चाहिए। आंवला, अमरुद एवं संतरा में प्राकृतिक रूप से विटामिन सी प्रचुर मात्रा में मौजूद रहता है। विटामिन ‘सी’ ही शरीर में आयरन का अवशोषण करता है, इस लिहाज से इसकी मात्रा को शरीर में संतुलित करने की आवश्यकता है ।
 
इन 6 आयु वर्ग के लोगों को किया गया है लक्षित: 
जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर के जिला सामुदायिक उत्प्रेरक (डीसीएम) निखिल राज ने बताया  एनीमिया मुक्त भारत अभियान के तहत छह आयु वर्ग के लोगों को लक्षित किया गया है। जिसमें 6 से 59 महीने के बालक और बालिकाएं, 5 से 9 साल के लड़के और लड़कियाँ, 10 से 19 साल के किशोर और किशोरियां और 20 से 24 वर्ष के प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएँ (जो गर्भवती या धात्री न हो) और 
गर्भवती महिलाएं एवम शिशु को स्तनपान कराने वाली महिलाएं शामिल हैं। 
 
प्रदान की जाती है निःशुल्क दवा : 
उन्होंने बताया कि एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत सभी 6 आयु वर्ग के लोगों में एनीमिया रोकथाम की कोशिश की जा रही है। इसके तहत 6 से 59 महीने के बालक और बालिकाओं को हफ्ते में दो बार आईएफए की 1 मिली लीटर सीरप आशा कार्यकर्ता के द्वारा उनकी माताओं को निःशुल्क दी जाती है। 5 से 9 साल के लड़के और लड़कियों को हर सप्ताह आईएफए की एक गुलाबी गोली दी जाती है। यह दवा प्राथमिक विद्यालय में प्रत्येक बुधवार को मध्याह्न के बाद शिक्षकों के माध्यम से निःशुल्क दी जाती है। इसके साथ ही 5 से 9 साल तक के वैसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं, उन्हें आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण के दौरान उनके घर पर ही आईएफए की गुलाबी गोली देती हैं। 10 से 19 साल के किशोर और किशोरियों को हर हफ्ते आईएफए की 1 नीली गोली दी जाती है जिसे विद्यालय एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों पर प्रत्येक बुधवार को भोजन के बाद शिक्षकों एवं आंगनबाड़ी सेविका के माध्यम से निःशुल्क प्रदान की जाती है। 20 से 24 वर्ष के प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं को आईएफए की एक लाल गोली हर हफ्ते आरोग्य स्थल पर आशा कार्यकर्ता के माध्यम से निःशुल्क दी जाती है।  इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के चौथे महीने से प्रतिदिन खाने के लिए आईएफए की 180 गोलियाँ दी जाती है, यह दवा उन्हें ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस के दिन प्रदान की जाती है। इसके साथ ही धात्री माताओं के लिए भी प्रसव के बाद आईएफए की 180 गोली दी जाती है, जिसे उन्हें प्रतिदिन खाने की सलाह दी जाती है। इस दवा का भी वितरण ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस के दिन निःशुल्क ही होता है। 
 
सप्ताह में दो ख़ुराक दिलाएगी आपके बच्चे को खून की कमी से निज़ात :
उन्होंने बताया कि एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत 6 माह से 59 माह तक के बच्चों को सप्ताह में दो बार आईएफए (आयरन फोलिक एसिड) सीरप देने का प्रावधान किया गया है। एक ख़ुराक में 1 मिली लीटर यानी 8-10 बूंद होती है। सभी आशा को स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सीरप की 50 मिलीलीटर की बोतलें आवश्यक मात्रा में दी जाती है। प्रथम दो सप्ताह में आशा स्वयं बच्चों को दवा पिलाकर माँ को सिखाने का प्रयास करती हैं एवं अनुपालन कार्ड भरना सिखाती हैं। दो सप्ताह के बाद ख़ुराक, माँ द्वारा स्वयं पिलाने तथा अनुपालन कार्ड में निशान लगाने के विषय में इस कार्यक्रम के दिशा-निर्देश में विशेष बल दिया गया है।

रिपोर्टर

  • Aishwarya Sinha
    Aishwarya Sinha

    The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News

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