प्री मैच्योरिटी डे-खानपान पर दें ध्यान और प्रसव पूर्व कराएं जांच, नहीं होगा प्री मैच्योर प्रसव


-थोड़ी सी लापरवाही पड़ सकती है भारी, जच्चा और बच्चा के स्वास्थ्य पर रहता है खतरा

-आधुनिक जीवनशैली भी प्री मैच्योर प्रसव का बड़ा कारण, रहन-सहन के प्रति रहें सतर्क  


बांका, 17 नवंबर-


 हर वर्ष 17 नवंबर को वर्ल्ड प्री मैच्योरिटी  डे मनाया जाता है। इस दिन तमाम जागरूकता कार्यक्रम के जरिये लोगों को प्री मैच्योर प्रसव को लेकर जागरूक किया जाता है। गर्भधारण के समय महिला की उम्र क्या हो, समेत तमाम जानकारियों से लोगों को अवगत कराया जाता है। साथ ही प्री मैच्योर प्रसव से क्या नुकसान होता है, इसके बारे में भी बताया जाता है। दरअसल, गर्भधारण के समय थोड़ी सी लापरवाही जच्चा और बच्चा, दोनों की जान पर भारी पड़ जाती  और महिलाओं को कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। 

शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि प्री मैच्योर प्रसव होने का सबसे बड़ा कारण आधुनिक जीवनशैली है। इसलिए जो महिलाएं गर्भधारण करती हैं उन्हें अपनी जीवनशैली में सुधार लाने की आवश्यकता है। साथ ही प्रसव पूर्व सभी चार जांच जरूरी तौर पर कराने की आवश्यकता है। ऐसा करने से प्री मैच्योर प्रसव का खतरा टल जाता  और जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहता है। उन्होंने कहा कि समय पूर्व प्रसव होने के और भी कई कारण हैं, लेकिन कमजोर महिलाओं के इस इस दायरे में आने का खतरा ज्यादा रहता है। समय पूर्व प्रसव में जन्म लेने वाले शिशु भी बेहद कमजोर होते हैं। समय पूर्व प्रसव होने के कारण शिशु गर्भ के दौरान मानसिक और शारीरिक रूप से संबल नहीं हो पाता है। इसलिए, ऐसी स्थिति में जच्चा-बच्चा की योग्य चिकित्सकों से तुरंत जांच करानी चाहिए और चिकित्सकीय परामर्श लेना जरूरी हो जाता है। डॉ. चौधरी कहते हैं कि 37 हफ्ते के बाद होने वाले प्रसव को सामान्य एवं परिपक्व प्रसव कहा जाता है। इससे पूर्व प्री मैच्योर प्रसव कहा जाता है। इस स्थिति में मां के साथ-साथ जन्म लेने वाले शिशु काफी कमजोर होते हैं। ऐसे शिशु में स्तनपान के लिए मां की छाती को चूसने एवं सांस लेने की क्षमता भी नहीं होती है। इस कारण बच्चे कई तरह की समस्याओं से घिर जाते हैं।

समय पूर्व प्रसव के कई कारणः डॉ. चौधरी कहते हैं कि समय पूर्व प्रसव होने के कई कारण होते हैं। जैसे कि माता का 40 किलो से कम वजन होना, शरीर में खून की कमी, गर्भावस्था के दौरान या प्रसव पूर्व ब्लीडिंग होना, गर्भाशय मुख का बेहद कमजोर होना आदि। इसलिए, गर्भावास्था के दौरान समय-समय पर चिकित्सकों से जांच करानी चाहिए एवं उनके परामर्श के अनुसार आवश्यक इलाज भी कराना चाहिए। हालांकि, इसमें कम उम्र में गर्भधारण करना और गर्भावस्था के दौरान उचित खान-पान का सेवन नहीं करना आदि मुख्य कारण हैं। ऐसी स्थिति में महिलाएं काफी कमजोर हो जाती  और  इस कारण सुरक्षित प्रसव नहीं हो पाता है। 

21 साल के बाद ही करें गर्भधारणः डॉ. चौधरी कहते हैं कि गर्भधारण के लिए महिलाओं का सही उम्र होना भी बेहद जरूरी है। कम उम्र में गर्भधारण होने से हमेशा समय पूर्व प्रसव होने की संभावना बनी रहती है। इससे महिलाओं को कई प्रकार की जटिल परेशानियों से जूझना पड़ जाता है। इसलिए, गर्भधारण के लिए महिलाओं का कम-से-कम 21 वर्ष का होना जरूरी है। इसलिए, इस उम्र में ही गर्भधारण कराना चाहिए, ताकि किसी प्रकार की अनावश्यक परेशानी उत्पन्न नहीं हो।

रिपोर्टर

  • Dr. Rajesh Kumar
    Dr. Rajesh Kumar

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