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थैलेसीमिया को लेकर माता-पिता रहें जागरूक
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- May 07, 2020
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भागलपुर, 7 मई
08 मई को थैलेसीमिया डे मनाया जा रहा है। सामान्य तौर पर यह बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है। अगर सही तरीके से इसका इलाज नहीं हो तो बच्चे की मौत भी हो सकती है। थैलैसीमिया से बचाव के लिए बड़े पैमाने पर जनजागरूकता की जरूरत है। इस वर्ष वर्ल्ड थैलेसीमिया डे 2020 का थीम ‘'नए युग के लिए थैलिसिमिया का चित्रण: वैश्विक प्रयासों के जरिए मरीजों को सस्ते एवं आसानी से उपलब्ध होने वाली नोबल थीरेपी’ है।
थैलेसीमिया की पहचान बच्चे में तीन महीने के बाद ही हो पाती है। इस बीमारी की वजह से बच्चों में रक्त की कमी होने लगती है। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रेड ब्लड सेल्स की उम्र 120 दिन होती है, जबकि थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में मात्र 20 दिनों की हो जाती है। दरअसल, इसमें रेड ब्लड सेल्स तेजी से नष्ट होने लगते हैं और नए बनते नहीं। इसके चलते शरीर में खून की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे आप अन्य बीमारियों के शिकार होने लगते हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रतिभा कहती हैं कि थैलेसीमिया से बचाव के लिए जागरूकता जरूरी है। गर्भधारण के बाद एक बार इसकी जांच करा लेनी चाहिए। आने वाले बच्चे में अगर किसी तरह के संकेत मिलते हैं तो तुंरत उसका उपचार शुरू कर देना चाहिए। जागरूकता से ही हम थैलेसीमिया को मात दे सकते हैं।
केयर इण्डिया के मातृ स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद ने बताया थैलेसीमिया एक गंभीर रोग है जो वंशानुगत बीमारियों की सूची में शामिल है। इससे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है जो हीमोग्लोबिन के दोनों चेन( अल्फा और बीटा) के कम निर्माण होने के कारण होता है। अभी भारत में लगभग एक लाख थैलेसीमिया मेजर के मरीज है और प्रत्येक वर्ष लगभग 10000 थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चे का जन्म होता है। अगर केवल बिहार की बात करें तो लगभग 2000 थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त मरीज है जो नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर है। जिन्हे ऊचित समय पर ऊचित खून न मिलने एवं ब्लड ट्रांसफ्यूजन से शरीर में होने वाले आयरन ओवरलोड से परेशानी रहती है और इस बीमारी के निदान के लिए होने वाले बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के महंगे होने के कारण इसका लाभ नहीं ऊठा पाते हैं। इसलिए खून संबंधित किसी भी तरह की समस्या पति, पत्नी या रिश्तेदार में कहीं हो तो सावधानी के तौर पर शिशु जन्म के पहले थैलेसीमिया की जांच जरुर करायें।
ऐसे करें थैलेसीमिया की पहचान
सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन ना ब़ढ़ना और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थैलेसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं। इस बीमारी में रोगी के शरीर में रेड ब्लड सेल्स कम होने लगते हैं और वह एनीमिया का शिकार हो जाता है। इस वजह से उसे हर समय कमजोरी व थकावट महसूस होने लगता है।
दो प्रकार के होते हैं थैलेसीमिया
थैलेसीमिया माइनर: यह माता-पिता में से किसी एक से आनुवांशिक विकार मिलने पर होता है। अगर किसी को थैलेसीमिया माइनर है, तो वह इस बीमारी के वाहक हैं। मगर उसे सामान्यत: स्वास्थ्य समस्याएं नहीं होंगी।
थैलेसीमिया मेजर: इसमें अधिक गंभीर रक्त विकार होते हैं। इनका मतलब है कि ये खराब वंशाणु आपको अपने माता व पिता दोनों से प्राप्त हुए हैं। एल्फा थैलेसीमिया मेजर की तुलना में बीटा थैलेसीमिया मेजर शिशुओं और बच्चों में अधिक आम है। ऐसा इसलिए क्योंकि दुर्भाग्यवश एल्फा थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त कुछ ही शिशु गर्भावस्था या जन्म के बाद बच पाते हैं।
क्या है उपचार
थैलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी मात्रा में रक्त और दवा की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते। इसके अलावा थैलेसीमिया का इलाज रोग की गंभीरता पर भी निर्भर करता है। कई बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में दो से तीन बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Premier World (Admin)