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कोरोना से बचाव के लिए लोगों को कर रहीं सतर्क
- by
- May 31, 2020
- 3543 views
• पचगछिया पंचायत की आशा फेसिलिटेटर आशा वर्मा 13 वर्षों से दे रही सेवा
• अब तक 10 हजार से भी अधिक लोगों की करवा चुकी हैं स्क्रीनिंग
भागलपुर, 31 मई:
कोरोना का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। अभी तक आशा फेसिलिटेटर अपनी टीम के सदस्यों के साथ गांव-गांव जाकर लोगों की स्क्रीनिंग करवा रही थीं, लेकिन अब उनके जिम्मे एक और काम आ गया है। गांव में होम क्वारंटाइन में रह रहे लोगों की निगरानी भी उन्हें करनी है। ऐसे में उनकी चुनौतियां और बढ़ गई हैं। गोपालपुर प्रखंड की पचगछिया पंचायत की आशा फेसिलिटेटर आशा वर्मा इस काम को पूरे उमंग के साथ कर रही हैं।
आशा कहती हैं कि जब कोरोना के काम में उनलोगों को लगाया था तो शुरुआत में थोड़ी झिझक थी, लेकिन जैसे ही काम करने के लिए फील्ड में जाने लगी तो समझी कि यह काम कितना महत्वपूर्ण है। पहले गांव के लोग कोरोना के प्रति ज्यादा सतर्क नहीं दिख रहे थे, लेकिन जब से उन्हें समझाया गया है तब से वे लोग जागरूक हो गए हैं। आशा कहती हैं कि वह गांव के लोगों को कोरोना से बचाव के तरीके भी बता रही हैं। साथ ही संदिग्धों की पहचान कर उसका सैंपलिंग भी करवा रही हैं। अब होम क्वारंटाइन में रह रहे लोगों की निगरानी कर रही है। आशा देवी अपनी टीम के साथ अभी तक 10 हजार से अधिक लोगों का स्क्रीनिंग करवा चुकी हैं। दियारा इलाके में इतनी बड़ी संख्या में स्क्रीनिंग कराना कोई आसान काम नहीं है। वह भी तब जब गांव-गांव जाने के लिए रास्ते भी कठिन हों। सड़क की स्थिति भी अच्छी नहीं है।
25 आशा कार्यकर्ताओं की टीम की कर रहीं नेतृत्व: आशा वर्मा 2007 से बतौर आशा काम कर रही थीं, लेकिन उनके काम को देखते हुए 2018 में उन्हें फेसिलिटेटर बना दिया गया है। अब वह 25 आशा कार्यकर्ताओं की टीम लीडर हैं। 600 से अधिक महिलाओं का सफल प्रसव कराने की उपलब्धि उनके खाते में है। इतने दिनों तक काम करने के बाद वह अपने क्षेत्र के लोगों के बीच वह काफी लोकप्रिय भी हो गई हैं। बच्चों और महिलाओं के टीकाकरण में भी वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। अपने क्षेत्र के गांव-गांव और घर-घर में उनकी पहचान बन गई है।
परिवार का मिल रहा सहयोग: आशा वर्मा के परिवार में दो बेटे एक बहू और दो पोता-पोती हैं। पति का स्वर्गवास हो चुका है। वह कहती हैं कि घर में बच्चों को छोड़कर काम पर जाना आसान नहीं है, लेकिन बेटा और बहू घर का कोई काम नहीं करने देते हैं। इस वजह से फील्ड में अपना काम काफी मेहनत से करती है। घर के काम के प्रति मैं निश्चिंत रहती हूं। शाम के वक्त सिर्फ पोते-पोती के साथ खेलती है।
फील्ड में काम करने का है अनुभव: आशा देवी 2007 से पहले स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई थीं। क्षेत्र की लड़कियों और महिलाओं को सिलाई और पेंटिंग का काम सिखातीं थी। फील्ड में अनुभव रहने के कारण गांव के मुखिया ने जब उन्हें एक दिन जुड़ने के लिए कहा तो तैयार हो गईं और 2006 में ट्रेनिंग लेने के बाद 2007 में आशा कार्यकर्ता बन गईं। आशा कहती हैं स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने की इच्छा पहले से थी। जब मौका मिला तो उसे उत्साह के साथ निभा रही हूं।
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The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
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